
सीहोर जिले के ग्राम खामखेड़ा जत्रा का शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जिसे दो साल पहले बड़े गर्व के साथ पीएम श्री का दर्जा मिला, आज हालात में ऐसे खड़ा है मानो यह कोई भूला-बिसरा सरकारी भवन हो।
कहने को यहां मैनेजमेंट फंड आता है, लेकिन हकीकत यह है कि 15 अगस्त जैसे राष्ट्रीय पर्व पर भी एक नया बैनर बनवाने के लिए पैसे नहीं निकले। गांव में प्रभात फेरी के दौरान बच्चों ने वही पुराना, सालों पुराना “शासकीय उच्चतर विद्यालय” वाला बैनर थाम रखा — मानो यह बताने में शर्म आ रही हो कि अब हम पीएम श्री हैं।
गांव के लोग भी पूछ रहे हैं — “जब खुद स्कूल अपनी पहचान नहीं दिखा पा रहा तो बच्चों को यहां पढ़ाकर क्या मिलेगा?”
इस स्कूल में अनुशासन का हाल ऐसा है कि एक टीचर खुद बच्चों को रैली से खींचकर फोटो के लिए बुला रहे थे, मानो शिक्षा नहीं, सिर्फ फोटो सेशन ही सबसे बड़ा काम हो। सवाल यह है — मास्टर जी, पीएम श्री का दर्जा है या ‘पीएम श्री’ का मजाक?
और अगर यही हाल रहा, तो बच्चों का भविष्य भी बैनर की तरह—पुराना और धुंधला—हो जाएगा।